अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च ।
अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः ॥ ३३ ॥

शब्दार्थ

अक्षराणाम् – अक्षरों में; अ-कारः – अकार अर्थात् पहला अक्षर; अस्मि – हूँ; द्वन्द्वः – द्वन्द्व समास; सामासिकस्य – सामसिक शब्दों में; – तथा; अहम् – मैं हूँ; एव – निश्चय ही; अक्षयः – शाश्वत; कालः – काल, समय; धाता – स्रष्टा; अहम् – मैं; विश्वतः-मुखः – ब्रह्मा ।

भावार्थ

अक्षरों में मैं अकार हूँ और समासों में द्वन्द्व समास हूँ । मैं शाश्वत काल भी हूँ और स्रष्टाओं में ब्रह्मा हूँ ।

तात्पर्य

अ-कार, अर्थात् संस्कृत अक्षर माला का प्रथम अक्षर (अ) वैदिक साहित्य का शुभारम्भ है । अकार के बिना कोई स्वर उच्चरित नहीं हो सकता, इसीलिए यह आदि स्वर है । संस्कृत में कई तरह के सामासिक शब्द होते हैं, जिनमें से राम-कृष्ण जैसे दोहरे शब्द द्वन्द्व कहलाते हैं । इस समास में राम तथा कृष्ण अपने उसी रूप में हैं, अतः यह समास द्वन्द्व कहलाता है ।

समस्त मारने वालों में काल सर्वोपरि है, क्योंकि यह सबों को मारता है । काल कृष्णस्वरूप है, क्योंकि समय आने पर प्रलयाग्नि से सब कुछ लय हो जाएगा ।

सृजन करने वाले जीवों में चतुर्मुख ब्रह्मा प्रधान हैं, अतः वे भगवान् कृष्ण के प्रतीक हैं ।