यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः
समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति ।
तथा तवामी नरलोकवीरा
विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ॥ २८ ॥

शब्दार्थ

यथा – जिस प्रकार; नदीनाम् – नदियों की; बहवः – अनेक; अम्बु-वेगाः – जल की तरंगें; समुद्रम् – समुद्र; एव – निश्चय ही; अभिमुखाः – की ओर; द्रवन्ति – दौड़ती हैं; तथा – उसी प्रकार से; तव – आपके; अभी – ये सब; नर-लोक-वीराः – मानवसमाज के राजा; विशन्ति – प्रवेश कर रहे हैं; वक्त्राणि – मुखों में; अभिविज्वलन्ति – प्रज्जवलित हो रहे हैं ।

भावार्थ

जिस प्रकार नदियों की अनेक तरंगें समुद्र में प्रवेश करती हैं, उसी प्रकार ये समस्त महान योद्धा भी आपके प्रज्जवलित मुखों में प्रवेश कर रहे हैं ।