यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत् ।
तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते ॥ १४ ॥

शब्दार्थ

यदा - जब; सत्त्वे - सतोगुण में; प्रवृद्धे - बढ़ जाने पर; तु - लेकिन; प्रलयम् - संहार, विनाश को; याति - जाता है; देह-भृत् - देहधारी; तदा - उस समय; उत्तम-विदाम् - ऋषियों के; लोकान् - लोकों को; अमलान् - शुद्ध; प्रतिपद्यते - प्राप्त करता है ।

भावार्थ

जब कोई सतोगुण में मरता है, तो उसे महर्षियों के विशुद्ध उच्चतर लोकों की प्राप्ति होती है ।

तात्पर्य

सतोगुणी व्यक्ति ब्रह्मलोक या जनलोक जैसे उच्च लोकों को प्राप्त करता है और वहाँ दैवी सुख भोगता है । अमलान् शब्द महत्त्वपूर्ण है । इसका अर्थ है, “रजो तथा तमोगुणों से मुक्त” । भौतिक जगत् में अशुद्धियाँ हैं, लेकिन सतोगुण सर्वाधिक शुद्ध रूप है । विभिन्न जीवों के लिए विभिन्न प्रकार के लोक हैं । जो लोग सतोगुण में मरते हैं, वे उन लोकों को जाते हैं, जहाँ महर्षि तथा महान भक्तगण रहते हैं ।