तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम् ।
प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत ॥ ८ ॥

शब्दार्थ

तमः - तमोगुण; तु - लेकिन; अज्ञान-जम् - अज्ञान से उत्पन्न; विद्धि - जानो; मोहनम् - मोह; सर्व-देहिनाम् - समस्त देहधारी जीवों का; प्रमाद - पागलपन; निद्राभिः - तथा नींद द्वारा; तत् - वह; निबध्नाति - बाँधता है; भारत - हे भरतपुत्र ।

भावार्थ

हे भरतपुत्र! तुम जान लो कि अज्ञान से उत्पन्न तमोगुण समस्त देहधारी जीवों का मोह है । इस गुण के प्रतिफल पागलपन (प्रमाद), आलस तथा नींद हैं, जो बद्धजीव को बाँधते हैं ।

तात्पर्य

इस श्लोक में तु शब्द का प्रयोग उल्लेखनीय है । इसका अर्थ है कि तमोगुण देहधारी जीव का अत्यन्त विचित्र गुण है । यह सतोगुण के सर्वथा विपरीत है । सतोगुण में ज्ञान के विकास से मनुष्य यह जान सकता है कि कौन क्या है, लेकिन तमोगुण तो इसके सर्वथा विपरीत होता है । जो भी तमोगुण के फेर में पड़ता है, वह पागल हो जाता है और पागल पुरुष यह नहीं समझ पाता कि कौन क्या है । वह प्रगति करने के बजाय अधोगति को प्राप्त होता है । वैदिक साहित्य में तमोगुण की परिभाषा इस प्रकार दी गई है - वस्तुयाथात्म्यज्ञानावरकं विपर्ययज्ञानजनकं तमः – अज्ञान के वशीभूत होने पर कोई मनुष्य किसी वस्तु को यथारूप में नहीं समझ पाता । उदाहरणार्थ, प्रत्येक व्यक्ति देखता है कि उसका बाबा मरा है, अतएव वह भी मरेगा, मनुष्य मर्त्य है । उसकी सन्ताने भी मरेंगी । अतएव मृत्यु ध्रुव है । फिर भी लोग पागल होकर धन संग्रह करते हैं और नित्य आत्मा की चिन्ता किये बिना अहर्निश कठोर श्रम करते रहते हैं । यह पागलपन ही तो है । अपने पागलपन में वे आध्यात्मिक ज्ञान में कोई उन्नति नहीं कर पाते । ऐसे लोग अत्यन्त आलसी होते हैं । जब उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान में सम्मिलित होने के लिए आमन्त्रित किया जाता है, तो वे अधिक रुचि नहीं दिखाते । वे रजोगुणी व्यक्ति की तरह भी सक्रिय नहीं रहते । अतएव तमोगुण में लिप्त व्यक्ति का एक अन्य गुण यह भी है कि वह आवश्यकता से अधिक सोता है । छह घंटे की नींद पर्याप्त है, लेकिन ऐसा व्यक्ति दिन भर में दस-बारह घंटे तक सोता है । ऐसा व्यक्ति सदैव निराश प्रतीत होता है और भौतिक द्रव्यों तथा निद्रा के प्रति व्यसनी बन जाता है । ये हैं तमोगुणी व्यक्ति के लक्षण ।