यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् ।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥ १२ ॥

शब्दार्थ

यत् - जो; आदित्य-गतम् - सूर्यप्रकाश में स्थित; तेजः - तेज; जगत् - सारा संसार; भासयते - प्रकाशित होता है; अखिलम् - सम्पूर्ण; यत् - जो; चन्द्रमसि - चन्द्रमा में; यत - जो; - भी; अग्नौ - अग्नि में; तत् - वह; तेजः - तेज; विद्धि - जानो; मामकम् - मुझसे ।

भावार्थ

सूर्य का तेज, जो सारे विश्व के अंधकार को दूर करता है, मुझसे ही निकलता है । चन्द्रमा तथा अग्नि के तेज भी मुझसे उत्पन्न हैं ।

तात्पर्य

अज्ञानी मनुष्य यह नहीं समझ पाता कि यह सब कुछ कैसे घटित होता है । लेकिन भगवान् ने यहाँ पर जो कुछ बतलाया है, उसे समझ कर ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है । प्रत्येक व्यक्ति सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि तथा बिजली देखता है । उसे यह समझने का प्रयास करना चाहिए कि चाहे सूर्य का तेज हो, या चन्द्रमा, अग्नि अथवा बिजली का तेज, ये सब भगवान् से ही उद्भूत हैं । कृष्णभावनामृत का प्रारम्भ इस भौतिक जगत् में बद्धजीव को उन्नति करने के लिए काफी अवसर प्रदान करता है । जीव मूलतः परमेश्वर के अंश हैं और भगवान् यहाँ पर इंगित कर रहे हैं कि जीव किस प्रकार भगवद्धाम को प्राप्त कर सकते हैं ।

इस श्लोक से हम यह समझ सकते हैं कि सूर्य सम्पूर्ण सौर मण्डल को प्रकाशित कर रहा है । ब्रह्माण्ड अनेक हैं और सौर मण्डल भी अनेक हैं । सूर्य, चन्द्रमा तथा लोक भी अनेक हैं, लेकिन प्रत्येक ब्रह्माण्ड में केवल एक सूर्य है । भगवद्गीता में (१०.२१) कहा गया है कि चन्द्रमा भी एक नक्षत्र है (नक्षत्राणामहं शशी) । सूर्य का प्रकाश परमेश्वर के आध्यात्मिक आकाश में आध्यात्मिक तेज के कारण है । सूर्योदय के साथ ही मनुष्य के कार्यकलाप प्रारम्भ हो जाते हैं । वे भोजन पकाने के लिए अग्नि जलाते हैं और फैक्टरियाँ चलाने के लिए भी अग्नि जलाते हैं । अग्नि की सहायता से अनेक कार्य किये जाते हैं । अतएव सूर्योदय, अग्नि तथा चन्द्रमा की चाँदनी जीवों को अत्यन्त सुहावने लगते हैं । उनकी सहायता के बिना कोई जीव नहीं रह सकता । अतएव यदि मनुष्य यह जान ले कि सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि का प्रकाश तथा तेज भगवान् श्रीकृष्ण से उद्भूत हो रहा है, तो उसमें कृष्णभावनामृत का सूत्रपात हो जाता है । चन्द्रमा के प्रकाश से सारी वनस्पतियाँ पोषित होती हैं । चन्द्रमा का प्रकाश इतना आनन्दप्रद है कि लोग सरलता से समझ सकते हैं कि वे भगवान् कृष्ण की कृपा से ही जी रहे हैं । उनकी कृपा के बिना न तो सूर्य होगा, न चन्द्रमा, न अग्नि और सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि के बिना हमारा जीवित रहना असम्भव है । बद्धजीव में कृष्णभावनामृत जगाने वाले ये ही कतिपय विचार हैं ।