बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं शृणु ।
प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनञ्जय ॥ २९ ॥

शब्दार्थ

बुद्धेः – बुद्धि का; भेदम् – अन्तर; धृतेः – धैर्य का; – भी; एव – निश्चय ही; गुणतः – गुणों के द्वारा; त्रि-विधम् – तीन प्रकार के; शृणु – सुनो; प्रोच्यमानम् – जैसा मेरे द्वारा कहा गया; अशेषेण – विस्तार से; पृथक्त्वेन – भिन्न प्रकार से; धनञ्जय – हे सम्पत्ति के विजेता ।

भावार्थ

हे धनञ्जय! अब मैं प्रकृति के तीनों गुणों के अनुसार तुम्हें विभिन्न प्रकार की बुद्धि तथा धृति के विषय में विस्तार से बताऊँगा । तुम इसे सुनो ।

तात्पर्य

ज्ञान, ज्ञेय तथा ज्ञाता की व्याख्या प्रकृति के गुणों के अनुसार तीन-तीन पृथक् विभागों में करने के बाद अब भगवान् कर्ता की बुद्धि तथा उसके संकल्प (धैर्य) के विषय में उसी प्रकार से बता रहे हैं ।