ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परन्तप ।
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः ॥ ४१ ॥

शब्दार्थ

ब्राह्मण – ब्राह्मण; क्षत्रिय – क्षत्रिय; विशाम् – तथा वैश्यों का; शुद्राणाम् – शूद्रों का; – तथा; परन्तप – हे शत्रुओं के विजेता; कर्माणि – कार्यकलाप; प्रविभक्तानि – विभाजित हैं; स्वभाव – अपने स्वभाव से; प्रभवैः – उत्पन्न; गुणैः – गुणों के द्वारा ।

भावार्थ

हे परन्तप! ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों तथा शूद्रों में प्रकृति के गुणों के अनुसार उनके स्वभाव द्वारा उत्पन्न गुणों के द्वारा भेद किया जाता है ।