ॐ इत्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ॥ १३ ॥

शब्दार्थ

– ओंकार; इति – इस तरह; एक-अक्षरम् – एक अक्षर; ब्रह्म – परब्रह्म का; व्याहरन् – उच्चारण करते हुए; माम् – मुझको (कृष्ण को); अनुस्मरन् – स्मरण करते हुए; यः – जो; प्रयाति – जाता है; त्यजन् – छोड़ते हुए; देहम् – इस शरीर को; सः – वह; याति – प्राप्त करता है; परमाम् – परं; गतिम् – गन्तव्य, लक्ष्य ।

भावार्थ

इस योगाभ्यास में स्थित होकर तथा अक्षरों के परम संयोग यानी ओंकार का उच्चारण करते हुए यदि कोई भगवान् का चिन्तन करता है और अपने शरीर का त्याग करता है, तो वह निश्चित रूप से आध्यात्मिक लोकों को जाता है ।

तात्पर्य

यहाँ स्पष्ट उल्लेख हुआ है कि ओम्, ब्रह्म तथा भगवान् कृष्ण परस्पर भिन्न नहीं हैं । ओम्, कृष्ण की निर्विशेष ध्वनि है, लेकिन हरे कृष्ण में यह ओम् सन्निहित है । इस युग के लिए हरे कृष्ण मन्त्र जप की स्पष्ट संस्तुति है । अतः यदि कोई - हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥ - इस मन्त्र का जप करते हुए शरीर त्यागता है तो वह अपने अभ्यास के गुणानुसार आध्यात्मिक लोकों में से किसी एक लोक को जाता है । कृष्ण के भक्त कृष्णलोक या गोलोक वृन्दावन को जाते हैं । सगुणवादियों के लिए आध्यात्मिक आकाश में अन्य अनेक लोक हैं, जिन्हें वैकुण्ठ लोक कहते हैं, किन्तु निर्विशेषवादी तो ब्रह्मज्योति में ही रह जाते हैं ।