अव्यक्ताद् व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे ।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके ॥ १८ ॥

शब्दार्थ

अव्यक्तात् – अव्यक्त से; व्यक्तयः – जीव; सर्वाः – सारे; प्रभवन्ति – प्रकट होते हैं; अहः-आगमे – दिन होने पर; रात्रि-आगमे – रात्रि आने पर; प्रलीयन्ते – विनष्ट हो जाते हैं; तत्र – उसमें; एव – निश्चय ही; अव्यक्त – अप्रकट; संज्ञके – नामक, कहे जाने वाले ।

भावार्थ

ब्रह्मा के दिन के शुभारम्भ में सारे जीव अव्यक्त अवस्था से व्यक्त होते हैं और फिर जब रात्रि आती है तो वे पुनः अव्यक्त में विलीन हो जाते हैं ।