शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते ।
एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुनः ॥ २६ ॥

शब्दार्थ

शुक्ल – प्रकाश; कृष्णे – तथा अंधकार; गती – जाने के मार्ग; हि – निश्चय ही; एते – ये दोनों; जगतः – भौतिक जगत् का; शाश्वते – वेदों में; मते – मत से; एकया – एक के द्वारा; याति – जाता है; अनावृत्तिम् – न लौटने के लिए; अन्यया – अन्य के द्वारा; आवर्तते – आ जाता है; पुनः – फिर से ।

भावार्थ

वैदिक मतानुसार इस संसार से प्रयाण करने के दो मार्ग हैं - एक प्रकाश का तथा दूसरा अंधकार का । जब मनुष्य प्रकाश के मार्ग से जाता है तो वह वापस नहीं आता, किन्तु अंधकार के मार्ग से जाने वाला पुनः लौटकर आता है ।

तात्पर्य

आचार्य बलदेव विद्याभूषण ने छान्दोग्य उपनिषद् से (५.१०.३-५) ऐसा ही विवरण उद्धृत किया है । जो अनादि काल से सकाम कर्मी तथा दार्शनिक चिन्तक रहे हैं वे निरन्तर आवागमन करते रहे हैं । वस्तुतः उन्हें परममोक्ष प्राप्त नहीं होता, क्योंकि वे कृष्ण की शरण में नहीं जाते ।